नई शिक्षा नीति 2020 नोट्स | NEP 2020 PDF NOTES IN HINDI

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020

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(राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में)

पृष्ठभूमि-

हमारे देश में आजादी के बाद से ही कई प्रकार की शिक्षा नीतियों का एवं शिक्षा के संदर्भ में सुधारों का प्रयास होता रहा है। सबसे पहले राधाकृष्णन आयोग (1948), उसके बाद लक्ष्मण स्वामी मुदालियर के नेतृत्व में मुदालियर आयोग (1952) बना, उसके माध्यम से काफी सुधार हुआ। उसके बाद (1964–66) दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में कोठारी आयोग बना। जिसके माध्यम से दिए गए सुझावों को 1968 में लागू किया गया। उसके बाद सबसे बड़ी शिक्षा नीति का आगमन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के कार्यकाल 1986 में हुआ। जो देश की अब तक की सबसे बड़ी शिक्षा नीति मानी जा सकती है।

  • 29 जुलाई, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अनुमोदित की गई, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 का स्थान लेगी।
  • पूर्व इसरो प्रमुख कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आधार सिद्धांत: –

(1) हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति, पहचान और उनके विकास हेतु प्रयास करना।

(2) बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता देना।

(3) लचीलापन।

(4) अवधारणात्मक समझ पर जोर।

(5) रचनात्मक और तार्किक सोच को प्रोत्साहन करना।

(6) नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य का विकास।

(7) बहु अधिकता और अध्ययन-अध्यापन के कार्य में भाषा की शक्ति को प्रोत्साहन।

(8) जीवन कौशल जैसे आपसी संवाद, सहयोग, सामूहिक कार्य और लचीलापन।

(9) सीखने के लिए सतत मूल्यांकन पर जोर।

(10) तकनीकी के यथासंभव उपयोग पर जोर।

(11) सभी पाठ्यक्रम, शिक्षा शास्त्र और नीति में स्थानीय संदर्भ की विविधता और स्थानीय परिवेश के लिए एक सम्मान, हमेशा ध्यान में रखते हुए कि शिक्षा एक समवर्ती विषय है।

(12) सभी शैक्षिक निर्णयों की आधारशिला के रूप में पूर्ण समता और समावेश साथ ही शिक्षा को लोगों की पहुँच और सामर्थ्य के दायरे में रखना।

(13) स्कूली शिक्षा से उच्चतर शिक्षा तक सभी स्तरों के शिक्षा पाठ्यक्रम में तालमेल, प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल तथा शिक्षा से।

(14) शिक्षकों और संकाय को सीखने की प्रक्रिया का केंद्र मानना – उनकी भर्ती और तैयारी की उत्कृष्ट व्यवस्था, निरंतर व्यावसायिक विकास और सृजनात्मक कार्य वातावरण और सेवा की स्थिति।

(15) शैक्षिक प्रणाली की अखण्डता, पारदर्शिता और संसाधन, कुशलता ऑडिट और सार्वजनिक प्रकटीकरण के माध्यम से सुनिश्चित करने के लिए एक हल्का, लेकिन प्रभावी नियामक ढाँचा- साथ ही साथ सशक्तीकरण के माध्यम से नवाचार और आउट-ऑफ-द बॉक्स विचारों को प्रोत्साहित करना।

(16) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और विकास के लिए उत्कृष्ट स्तर का शोध।

(17) शैक्षिक विशेषज्ञों द्वारा निरंतर अनुसंधान और नियमित मूल्यांकन के आधार पर प्रगति की सतत समीक्षा।

(18) भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना और जहाँ प्रासंगिक लगे वहाँ भारत की समृद्ध और विविध प्राचीन और आधुनिक संस्कृति और ज्ञान प्रणालियों और परम्पराओं को शामिल करना और उससे प्रेरणा पाना।

(19) शिक्षा एक सार्वजनिक सेवा है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच को प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए।

(20) एक मजबूत, जीवंत सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त निवेश। साथ ही सच्चे परोपकारी निजी और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन और सुविधा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्त्वपूर्ण बिंदु –

· 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है, जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को सार्वभौमिक बनाना है।

· नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को चार भागों तथा 27 अध्यायों में विभक्त किया गया है।

चार भाग –

(i) स्कूल शिक्षा (ii) उच्चतर शिक्षा

(iii) अन्य केंद्रीय विचारणीय मुद्दे  (iv) क्रियान्वयन की रणनीति

· नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, भारत द्वारा, 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेण्डा, 2030 के लक्ष्य 4 (एसडीजी) में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक “सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने” का लक्ष्य है। इस तरह के उदात्त लक्ष्य के लिए संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी, ताकि सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्त्वपूर्ण टार्गेट और लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्त किए जा सकें।

· नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।

· नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तन कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ कर दिया गया।

· नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिजाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।

· द डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा) पर बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर उच्चतर-गुणवत्ता वाले संसाधनों का एक राष्ट्रीय भण्डार उपलब्ध करवाया जाएगा।

· नई शिक्षा नीति में पाँचवीं क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई।

· वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% जीईआर (Gross Enrollment Ratio) के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है।

· 2030 तक प्री स्कूल से माध्यमिक स्तर तक 100% एकल नामांकन अनुपात अर्जित करने हेतु प्रतिबद्ध।

· कक्षा-6 से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएँगे।

· नई शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों को छठी कक्षा से ही कोडिंग सिखाई जाएगी। वर्ष 2025 तक स्कूल और उच्चतर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा का अनुभव प्रदान किया जाएगा।

· छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिए मानक-निर्धारित निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।

· छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिए ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।

· नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।

· नई शिक्षा नीति में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद् (Higher Education Commission of India – HECI) की परिकल्पना की गई।

· एक स्वायत्त निकाय के रूप में “राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच” (National Education Technology Forum) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन, योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।

· नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है।

NEP-2020 के क्रियान्वयन की दिशा में राजस्थान की तैयारी:-

· राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 की क्रियान्विति की दिशा में राज्य में ECCE के लिए लगभग 40,000 आंगनबाड़ी केन्द्रों का समन्वयन विद्यालयों के साथ किया जा चुका है तथा 1,033 बाल वाटिकाएँ प्रारम्भ की जा रही है। पूर्व प्राथमिक की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है। NEP-2020 के निर्देशों के अनुसार सभी ड्रॉप आउट बालकों को विद्यालय से जोड़ते हुए सकल नामांकन अनुपात शत-प्रतिशत करना, शिक्षक-शिक्षा, शिक्षा में तकनीकी का प्रयोग एवं बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान पर कार्य प्रगति पर है।

निपुण भारत (NIPUN BHARAT)

· पूरा नाम: National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy

· ध्येय वाक्य – निपुण भारत का सपना सब बच्चे समझे भाषा और गणना।

· लॉन्च:- 5 जुलाई, 2021

राष्ट्रीय मिशन: निपुण भारत का विजन: –

· मिशन का दृष्टिकोण बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान के सार्वभौमीकरण को सुनिश्चित करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना है, ताकि 2026-27 तक प्रत्येक विद्यार्थी कक्षा III के अंत में पढ़ने, लिखने और अंकगणित में वांछित सीखने की क्षमता प्राप्त कर सके।

राष्ट्रीय मिशन: मिशन के उद्देश्य: –

(1) खेल, खोज और गतिविधि-आधारित शिक्षाशास्त्र को शामिल करके,  इसे बच्चों की दैनिक जीवन स्थितियों से जोड़कर और बच्चों की  घरेलू भाषाओं को औपचारिक रूप से शामिल करके एक समावेशी  कक्षा वातावरण सुनिश्चित करना।

(2) स्थायी पठन और लेखन कौशल रखने वाली समझ के साथ बच्चों को प्रेरित, स्वतंत्र और व्यस्त पाठक और लेखक बनने में सक्षम बनाना।

(3) बच्चों को संख्या, माप और आकार के क्षेत्र में तर्क को समझाने के  लिए और उन्हें संख्यात्मकता और स्थानिक समझ कौशल के  माध्यम से समस्या समाधान में स्वतंत्र बनने में सक्षम बनाना।

(4) बच्चों की परिचित/घर/मातृभाषा (भाषाओं) में उच्च गुणवत्ता और  सांस्कृतिक रूप से उत्तरदायी शिक्षण सामग्री की उपलब्धता और  प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना।

(5) शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, शैक्षणिक संसाधन व्यक्तियों और शिक्षा  प्रशासकों के निरंतर क्षमता निर्माण पर ध्यान देना।

(6) आजीवन सीखने की एक मजबूत नींव बनाने के लिए सभी  हितधारकों अर्थात् शिक्षकों, अभिभावकों, छात्रों और समुदाय, नीति  निर्माताओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना।

(7)  पोर्टफोलियो, समूह और सहयोगी कार्य, परियोजना कार्य, प्रश्नोत्तरी,  रोल प्ले, खेल, मौखिक प्रस्तुतीकरण, लघु परीक्षण आदि के माध्यम  से “सीखने के लिए” के रूप में मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए।

(8)  सभी छात्रों के सीखने के स्तर की ट्रैकिंग सुनिश्चित करना।

स्कूली शिक्षा की सर्वोच्च प्राथमिकता ‘ग्रेड 3 द्वारा मूलभूत शिक्षण कौशल का सार्वभौमिक उपलब्धि’ होगी।

· जो विद्यार्थी पठन कौशल नहीं जानते, वे पठन आधारित कौशलों में पीछे छूट जाते हैं। कक्षा 3 वह विभक्ति बिंदु है जहाँ बच्चों से ‘पढ़ने के लिए सीखने (Learn to Read)’ की अपेक्षा की जाती है ताकि वे उसके बाद ‘सीखने के लिए पढ़ सकें (Read to Learn)’।

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शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य 2026-27 तक आधारभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान हासिल करना है, जहाँ, कक्षा 3 तक हर विद्यार्थी…..

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पढ़कर समझ सके लिख पाए

 

बुनियादी गणितीय संक्रियाएँ कर पाए बुनियादी जीवन कौशल अर्जित कर पाए

बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान (FLN): –

· विद्यार्थियों में पहले से मौजूद भाषा का मौखिक ज्ञान बुनियादी भाषा और साक्षरता कौशल के निर्माण में मदद करता है। बुनियादी भाषा और साक्षरता के  प्रमुख घटक हैं :

1. मौखिक भाषा विकास: – इसमें वार्तालाप कौशल विकास, बेहतर सुनना, समझना और मौखिक शब्दावली विकास शामिल है । मौखिक भाषा के अनुभव पढ़ने और लिखने के कौशल विकसित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

2. डिकोडिंग (Decoding): – इसमें प्रतीकों और उनकी ध्वनियों के बीच संबंध को समझने और इनके  आधार पर लिखित शब्दों को समझना शामिल है l

3. धाराप्रवाह पढ़ना (Fluency): – पाठ को सटीकता (Accuracy), उचित गति (Speed) और स्वचालितता (Automaticity), अभिव्यक्ति और समझ के साथ पढ़ने की क्षमता जो बच्चों को पाठ से अर्थ ग्रहण में मदद करता है।

4. समझकर पढ़ना  (Comprehension): – एक पाठ से अर्थ का निर्माण करना और इसके बारे में गंभीर रूप से सोचना शामिल है। यह डोमेन ग्रंथों को समझने और उनसे जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ ग्रंथों की व्याख्या करने की दक्षताओं को शामिल करता है।

5. लेखन: – अक्षर और शब्दों को लिखने की क्षमता के साथ-साथ अभिव्यक्ति के लिए लिखने की क्षमता भी शामिल है।

बुनियादी गणित/संख्या ज्ञान के प्रमुख पहलू और घटक हैं: –

· मूलभूत संख्या ज्ञान का अर्थ है- दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने में सरल संख्यात्मक अवधारणाओं को तर्क करने और लागू करने की क्षमता।

· संख्या-पूर्व अवधारणा: -विद्यार्थी संख्या प्रणाली पूर्व अवधारणाओं  और गिनने को समझें l

· संख्याओं पर गणितीय संक्रियाएँ:- गणित/गणना में प्रवीणता के  लिए आवश्यक तकनीक सीखें; जैसे- दसांक प्रणाली (10 based  number system) का उपयोग।

· आकृतियाँ और स्थानिक समझ: – दुनिया का वर्णन और वर्गीकरण आकार, स्थान, स्थिति, दिशा और गति के आधार पर  सीखना समझना।

· मापन: – अंतरिक्ष और स्थानिक समझ का विस्तार करने के लिए  संबंधपरक/तुलना शब्दावली सीखना।

· डेटा संधारण: – अपने दैनिक जीवन में सरल डेटा/सूचनाओं को  एकत्र, प्रस्तुत और व्याख्या करने संबंधी गतिविधियाँ।

आधारभूत शिक्षा के लिए सीखने के परिणामों को 3 विकास लक्ष्यों में विभाजित किया गया है:-

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· विकासात्मक लक्ष्यों को ईसीसीई के 3 वर्षों के अनुरूप 6 स्तरों में  विभाजित किया गया है, इसके बाद 3 साल की स्कूली शिक्षा।

· प्रत्येक सीखने के परिणाम को आसान पहचान और संदर्भ के लिए  एक कोड दिया गया है। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि ये संख्याएँ  पदानुक्रमित नहीं हैं, लेकिन इन अनुभवों को एक साथ एकीकृत  तरीके से प्रदान किया जा सकता है।

लक्ष्य:  निपुण भारत मिशन में सीखने के लक्ष्य:-

· राष्ट्रीय मिशन प्रत्येक राज्य/संघ-राज्य क्षेत्र द्वारा वर्ष 2026-27 तक प्राप्त किए जाने वाले वर्षवार परिणामों सहित सीखने के परिणामों को प्राप्त करने में समग्र राष्ट्रीय लक्ष्यों की घोषणा की गई है। मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए समग्र साक्षरता और संख्या ज्ञान के लक्ष्य बालवाटिका से शुरू होने वाली मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।

 

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सीखने का आकलन: –

· मूल्यांकन की बहुविध तकनीकों का उपयोग करते हुए निरंतर और व्यापक तरीके से बच्चों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए आकलन महत्त्वपूर्ण है। इसका उद्देश्य विशेष आवश्यकता वाले बच्चों सहित प्रत्येक मूलभूत चरण अर्थात् FYL-1, FYL-2, FYL-3, FYL-4, FYL-5 और FYL-6 में सीखने की कमियों की शीघ्र पहचान करना है ताकि विशेषज्ञों के रेफरल के माध्यम से शीघ्र हस्तक्षेप की संभावनाएँ हो सकें l

· हितधारकों (Stakeholders) की मदद के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग कर बच्चों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक समग्र और उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण है :

आधारभूत शिक्षा के दौरान मूल्यांकन/आकलन को मोटे तौर पर दो प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है, अर्थात्:

1. SBA : स्कूल आधारित मूल्यांकन (School Based Assessment) आधारभूत स्तर पर SBA तनाव मुक्त होना चाहिए और बड़े पैमाने पर अनुभवों और गतिविधियों में बच्चे के प्रदर्शन के आधार पर गुणात्मक अवलोकन के माध्यम से होना चाहिए।

2. LSA : बड़े पैमाने पर मानकीकृत मूल्यांकन (Large Scale Assessment) राज्य, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर मूल्यांकन डेटा ‘सिस्टम’ पर केंद्रित है और राष्ट्र, राज्य या जिले के शैक्षिक स्वास्थ्य का वर्णन करता है।

एक समावेशी कक्षा बनाने के लिए शिक्षाशास्त्र:-

· बाल-केंद्रित शिक्षाशास्त्र पर जोर

· प्रामाणिक, उपयुक्त और सुलभ खिलौनों और सामग्री सहित इंटरैक्टिव कक्षा पर जोर।

· खिलौना आधारित शिक्षाशास्त्र

· गतिविधि आधारित/अनुभवात्मक शिक्षा

· प्ले आधारित

· कला-एकीकृत/खेल-एकीकृत

· कहानी कहने पर आधारित

· आईसीटी-एकीकृत शिक्षा

शिक्षकों को सशक्त बनाना: –

· स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों में सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, एनसीईआरटी ने शिक्षक प्रशिक्षण का एक अभिनव एकीकृत कार्यक्रम तैयार किया है, जिसे अब NISHTHA (निष्ठा: स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिए राष्ट्रीय पहल) के रूप में जाना जाता है।

स्कूल तैयारी मॉड्यूल (Sachool Preparation Module): –

· बच्चे के दिमाग का 85% हिस्सा 6 साल की उम्र से पहले विकसित हो जाता है।

· NEP-2020 ने NCERT द्वारा सभी कक्षा 1 के नव प्रवेशी विद्यार्थियों के लिए ‘3-महीने का प्ले-आधारित’ स्कूल तैयारी मॉड्यूल ’के विकास की सिफारिश की है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक अंतरिम उपाय के रूप में कि गुणवत्तापूर्ण पूर्वस्कूली शिक्षा का सार्वभौमिक प्रावधान प्राप्त होने तक सभी बच्चे स्कूल के लिए तैयार हैं ।

· एक स्कूल तैयारी मॉड्यूल (SPM) अनिवार्य रूप से कक्षा I की शुरुआत में लगभग 12 सप्ताह का विकासात्मक रूप से उपयुक्त निर्देश है जिसे बच्चे की पूर्व-साक्षरता, पूर्व-संख्यात्मकता, संज्ञानात्मक और सामाजिक कौशल को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

              

· यह उम्मीद की जाती है कि इस मॉड्यूल में अक्षर, ध्वनियों, शब्दों, रंगों, आकृतियों और संख्याओं के सीखने और साथियों और माता-पिता के सहयोग से संबंधित गतिविधियों और कार्यपुस्तिकाएँ शामिल होंगी।

राष्ट्रीय मिशन: कार्यान्वयन तंत्र: –

· राष्ट्रीय-राज्य-जिला-ब्लॉक-स्कूल स्तर पर मिशन के लिए एक पाँच स्तरीय कार्यान्वयन तंत्र स्थापित किया जाएगा।

अकादमिक टास्क फोर्स (Academic Task Force):-

राज्य (ATF)

अकादमिक टास्क फोर्स

जिला (DATF)

अकादमिक टास्क फोर्स

ब्लॉक (BATF)

अकादमिक टास्क फोर्स

·  अध्यक्षता : SPD

· One member from    the SCERT

· One member from  the DIET

· One Educational  Administrator

·  One School Head

·  One Teacher

 

· अध्यक्षता : CDEO

· DEO–H  (Sec & Ele)

· ADPC,

· APC

· DIET FLN प्रभारी

· CBEOs

· SRGs: 2

· PEEOs: 2

· शिक्षा में कार्यरत स्वयं  सेवी संस्थाएं

· अध्यक्षता : CBEO

· ACBEO 1 & 2

· Resource Person

· KRPs:Literacy,

Numeracy

· PEEOs/UCEOs

· शिक्षक; जो FLN पर  कार्य करते हों

· Master Trainers:

Literacy, Numeracy

· शिक्षा में कार्यरत स्वयं  सेवी संस्थाएँ

बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान (FLN) आधारित शिक्षक प्रशिक्षण मॉड्यूल (कक्षा 1 से 5 में अध्यापन कराने वाले शिक्षकों के लिए)

· सहयोगी संस्थाएँ- राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, उदयपुर व राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद्, जयपुर।

· शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई प्रवीणता हेतु एक राष्ट्रीय पहल निपुण (NIPUN) भारत मिशन की शुरुआत की है। जिसका उद्देश्य बुनियादी साक्षरता तथा संख्या ज्ञान (FLN) की सार्वभौमिक प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए एक सक्षम वातावरण निर्मित करना है।

· साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) का प्रमुख उद्देश्य ऐसी शिक्षा व्यवस्था देना है, जहाँ प्रत्येक सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले विद्यार्थियों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना है। NEP-2020 में अपेक्षित है कि शिक्षण प्रक्रिया शिक्षार्थी केन्द्रित, जिज्ञासा, खोज, अनुभव एवं संवाद के आधार पर संचालित और लचीली होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक शिक्षार्थी को समग्रता व समन्वित रूप से देखने और समझने में सक्षम बनाना NEP-2020 व FLN दोनों में अपेक्षित है। इन्हीं अपेक्षाओं व उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक स्तर पर शिक्षण कार्य करवाने वाले शिक्षकों के लिए छह दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण मॉड्यूल को तैयार किया गया है।

· इस प्रशिक्षण मॉड्यूल में NEP-2020 तथा FLN के पूर्व प्राथमिक तथा प्राथमिक शिक्षा से संबंधित मुख्य बिन्दुओं की शिक्षकों के साथ चर्चा संबंधी सत्रों को समावेशित किया गया है और शिक्षण प्रक्रिया में उपयोगी विभिन्न आयामों जैसे-गतिविधि आधारित शिक्षण, प्रिंटरिच तथा पुस्तकालय का उपयोग, खेल व कला के माध्यम से शिक्षण मातृभाषा का शिक्षण में उपयोग, SIQE और विभिन्न विषयों में अन्तर्सम्बन्ध को मुख्य रूप से सम्मिलित किया गया है।

· कोविड-19 के दौरान जो लर्निंग गैप और लर्निंग लॉस हुआ है उसकी पूर्ति के लिए ब्रिज कोर्स कार्य पुस्तिकाओं का उपयोग, बहुकक्षीय व बहुस्तरीय शिक्षण एवं स्कूल रेडीनेस से संबंधी सत्रों का समावेशन भी किया गया है।

SIQE कार्यक्रम के अंतर्गत CCE प्रक्रिया:-

नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून-2009

· सरकार के दायित्व- शिक्षा का अधिकार कानून की धारा-8 के अनुसार सरकार का दायित्व है कि बालक-बालिकाओं को गुणवत्तापूर्ण प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए।

· शैक्षिक प्राधिकारी के दायित्व- कानून की धारा 29 (2) के अनुसार गुणवत्तापूर्ण प्रारम्भिक शिक्षा हेतु गतिविधि आधारित बाल केन्द्रित शिक्षण हेतु पाठ्यक्रम का निर्माण करना। शिक्षण के दौरान सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की व्यवस्था सुनिश्चित करना।

· शिक्षकों के दायित्व- कानून की धारा 24 की उपधारा (24 घ) में बच्चों के शैक्षिक स्तर का आकलन, रिकॉर्ड संधारण और आवश्यकता होने पर अतिरिक्त शिक्षण करवाना है।

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SIQE के उद्देश्य:-

· सीखने के पर्याप्त अवसर

· परीक्षा के भय को दूर करना

· गतिविधि आधारित शिक्षण

· ज्ञान को स्थायी एवं प्रभावी बनाना

· सृजनात्मक एवं मौलिक चिन्तन का विकास

· शैक्षणिक प्रगति को दर्ज करना

· बच्चों की प्रगति को अभिभावकों के साथ साझा करना

· नामांकन एवं ठहराव में वृद्धि करना

· शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर, आनन्ददायी बनाना

· बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं संख्याज्ञान की समझ

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया-

· आधार रेखा मूल्यांकन/पदस्थापन प्रक्रिया-

– सत्र के आरम्भ में

– प्रत्येक टर्म के पश्चात्

· समूह निर्धारण- आधार रेखा मूल्यांकन के आधार पर

– कक्षा स्तर के अनुसार (समूह-1)

– कक्षा स्तर से नीचे (समूह-2)

· शिक्षण अधिगम योजना एवं समीक्षा: समूहवार

– पाक्षिक योजना

– साप्ताहिक समीक्षा

– सतत आकलन योजना

– शिक्षण के दौरान ही सतत आकलन

· रचनात्मक आकलन हेतु व्यापक टूल-

– चेकलिस्ट

– कार्य-पत्रक

– पोर्टफोलियो

– कक्षा कार्य: अभ्यास पुस्तिका, गतिविधियाँ करवाना

– गृह कार्य

योगात्मक आकलन प्रक्रिया:-

– पेपर-पेन्सिल टेस्ट

– रचनात्मक आकलन की चेकलिस्ट

– कार्य-पत्रक

– कक्षा कार्य एवं गृह कार्य

– प्रोजेक्ट कार्य

– साप्ताहिक व पाक्षिक समीक्षा

– पोर्टफोलियो

– अन्य गतिविधियाँ

· इसके आधार पर सत्र के दौरान तीन बार योगात्मक आकलन दर्ज किया जाता है।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया: –